।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७१, सोमवार
वैशाखी
भगवान्‌का अलौकिक समग्ररूप



भगवान्‌का यह स्वभाव है कि जो जिस प्रकारसे उनका आश्रय लेता हैवे भी उसी प्रकारसे उसको आश्रय देते हैं और जो जिस भावसे उनका भजन करता हैवे भी उसी भावसे उसका भजन करते हैं‒
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
                            (गीता ४ । ११)
जब भगवान्‌की बात चलती हैतह भक्त उसीमें मस्त हो जाता है और दूसरी सब बातें भूल जाता है । इसी तरह गीताजीमें छठे अध्यायके अन्तमें भक्तकी बात चली‒
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः ।
कर्मिभ्यश्चाधिको   योगी    तस्माद्योगी   भवार्जुन ॥
                                                                                  (गीता ६ । ४६)
‘तपस्वियोंसे भी योगी श्रेष्ठ हैज्ञानियोंसे भी योगी श्रेष्ठ है और कर्मियोंसे भी योगी श्रेष्ठ है‒ऐसा मेरा मत है । अत: हे अर्जुन ! तू योगी हो जा ।’

योगिनामपि सर्वेषां     मद्गतेनान्तरात्मना ।
श्रद्धावान्भजते वो मां स मे युक्ततमो मत: ॥
                                                                               (गीता ६ । ४७)
‘सम्पूर्ण योगियोंमें भी जो श्रद्धावान् भक्त मेरेमें तल्लीन हुए मनसे (प्रेमपूर्वक) मेरा भजन करता हैवह मेरे मतमें सर्वश्रेष्ठ योगी है ।’

भक्तकी बात चलनेपर भगवान् उसीमें मस्त हो गये,दूसरी सब बातें भूल गये और अर्जुनके द्वारा प्रश्न किये बिना ही भक्तिकी बात कहनेके लिये अपनी तरफसे सातवाँ अध्याय शुरू कर दिया ! भगवान्‌ने कहा कि मैं वह विज्ञानसहित ज्ञान कहूँगाजिससे तू मेरे समग्ररूपको जान जायगा । मेरे समग्ररूपको जाननेके बाद फिर कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगाक्योंकि जब मेरे सिवाय किंचिन्मात्र भी कुछ है ही नहींफिर जानना क्या बाकी रहा ?‘मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।’ (गीता ७ । ७)‘यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।’ (गीता ४ । ३५) । भगवान्‌के इस समग्ररूपको शरणागत भक्त ही जान सकते हैं । इसलिये जो भक्त भगवान्‌की शरण लेकर लगनपूर्वक साधन करते हैं,वे विज्ञानसहित ज्ञानको अर्थात् भगवान्‌के समग्ररूपको जान लेते हैं । भगवान् कहते हैं‒
जरामरणमोक्षाय       मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्म तद्विदु: कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥
साधिभूताधिदैवं मां     साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां       ते विदुर्युक्तचेतसः ॥
                                                                             (गीता ७ । २९-३०)
‘जरा और मरणसे मोक्ष पानेके लिये जो मेरा आश्रय लेकर यत्न करते हैंवे उस ब्रह्मकोसम्पूर्ण अध्यात्मको और सम्पूर्ण कर्मको भी जान जाते हैं । जो मनुष्य अधिभूत,अधिदैव और अधियज्ञके सहित मुझे जानते हैंवे युक्तचेता मनुष्य अन्तकालमें भी मुझे ही जानते अर्थात् प्राप्त होते हैं ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सब जग ईश्वररूप है’ पुस्तकसे