।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद कृष्ण षष्ठीवि.सं.२०७१शनिवार
हलषष्ठी (ललहीछठ)
नाम-महिमा



(गत ब्लॉगसे आगेका)
हाथ काम मुख राम हैहिरदे साँची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की याही उत्तम रीत ॥

जो हाथसे तो काम-धन्धा करते रहे और मुखसे राम राम राम.....चलता रहे और हृदयमें भगवान्‌से अपनापन हो,वह गृहस्थी सन्त है । इस साधनको सभी भाई-बहन स्वतन्त्रतासे कर सकते हैं । हृदयमें भगवान्‌के प्रति सच्चा प्रेम हो कि भगवान् हमारे हैं और हम भगवान्‌के हैं । संसार हमारा नहीं है और हम संसारके नहीं हैं । संसारकी सेवा कर देनी हैक्योंकि संसारकी सेवाके लिये ही यहाँ आना हुआ है । संसारसे लेनेके लिये नहीं आये हैं हम । यहाँ लेना कुछ नहीं है । यहाँकी ये चीजें साथ चलेंगी नहीं । मेरी-मेरी कर लोगे तो अन्तःकरणमें मेरेपनका जो संस्कार पड़ेगावह जन्म देगा,दुःख देगा‒
मायामें रह जाय बासना अजगर देह धरासी ।

रुपये-पैसोमें वासना रह गयी तो साँप बनना पड़ेगा । धन साथमें नहीं चलेगा और यदि भगवद्भजन कर लोगे तो वह साथमें चलेगा । वह असली पूँजी है‒
राम  नाम  धन  पायो  प्यारा,
जनम जनमके मिटत बिकारा ।
‒   ‒   ‒
पायो री मैंने राम रतन धन पायो ।

सन्तोंकी वाणीमें जहाँ गुरु महाराजकी महिमा गायी हैउसमें कहा है‒गुरुजी महाराज बड़े दाता मिले । उन्होंने हमारेको भगवान्‌का नाम देकर धनवान् बना दिया‒‘धिन-धिन धनवंत कर दिया गुरू मिलिया दातारा ।’ सज्जनो ! इसकी कीमत समझनेपर फिर महिमा समझमें आती है कि नाम कितना विलक्षण है । सन्त-महात्माओंसे जिनको नाम प्राप्त हुआ हैवे लोग गुण गाते हैं । जो अच्छे-अच्छे महापुरुष हो गये हैंवे भी गुरुकी महिमा गाते हैं । किस बातको लेकरकि महाराजने हमारेको भगवान्‌का नाम दे दिया ।

उस नामसे क्या-क्या आनन्द होता हैउसका कोई पारावार नहीं । नाम महाराजकी अपार महिमा हैअसीम महिमा है । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज सीतारामजीको इष्ट मानते हैं और वे उनके अनन्य भक्त हैंपरन्तु नामकी महिमा गाते हुए वे कहते हैं‒‘कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई । राम न सकहिं नाम गुन गाई ॥’ नामकी महिमा मैं कहाँतक कहूँभगवान् राम भी नामकी महिमा कह सकते नहीं । अपने इष्टको भी असमर्थ बता देते हैं अर्थात् इस नामकी महिमाके विषयमें हमारे श्रीरघुनाथजी भी असमर्थ हैं । भाईनामकी महिमा यहाँतक है, यहाँतक हैऐसा कहनेमें भगवान् भी असमर्थ हैं । अपने इष्टको भी असमर्थ बता देना क्या तिरस्कार नहीं है नहींनहींआदर है । कैसे इस नामकी इयत्ता (सीमा) है ही नहीं कि भाईइसकी इतनी-इतनी महिमा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे