।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७१, रविवार
रम्भा एकादशी-व्रत (सबका)
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रथम   राम   रसना   सिवर,    द्वितीय   कण्ठ   लगाय ॥
तृतीय   हृदय   ध्यान   धर,     चौथे    नाभ    मिलाय ॥
अध मध उत्तम प्रिय घर ठानु, चौथे अति उत्तम अस्थानु ॥
ये चहुँ बिन देखे आसरमा, राम भगति को पावे मारमा ॥
                                                              (नामापरचा)

ऐसे जब ‘राम’ नाम भीतर उतरेगा तो भीतर जानेपर वह सब काम कर लेगा । शुद्धि, पवित्रता, निर्मलता, भगवान्‌की भक्तिजो आनी चाहिये सब आ जायगी । इसलिये गोस्वामीजी महाराजने बड़ी विचित्र बात लिखी‘नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी ।’ और कुछ नहीं तो जीभसे ही जपो । ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’भगवान्‌के नामका जप करे और भीतर-ही-भीतर ध्यान होता रहेउसका तो फिर कहना ही क्या है ! जीभमात्रसे नाम जपनेसे योगी जाग जाता है | जो नाम जप करते हैं, जीभमात्रसे ही, वे भी ब्रह्माजीके प्रपंचसे वियुक्त होकर विरक्त सन्त हो जाते हैं । जीभमात्रसे जप करना है भी सुगम ।

बहुतसे लोग कह देते हैं‘तुम नाम-जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहींऐसा कहनेवाले वे भाई भोले हैं, वे भूलमें हैं, इस बातको जानते ही नहीं; क्योंकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं । पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगेऐसा कभी हुआ है ? और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ? पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगेऐसा नहीं होता । नाम जपते-जपते ही नाम-महाराजकी कृपासे मन लग जाता है ‘हरिसे लागा रहो भाई । तेरी बिगड़ी बात बन जाई, रामजीसे लागा रहो भाई ॥’ इसलिये नाम-महाराजकी शरण लेनी चाहिये । जीभसे ही ‘राम-राम’ शुरू कर दो, मनकी परवाह मत करो । ‘परवाह मत करो’इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ । इसका अर्थ यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ । यह बात नहीं है । जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओ । हमने सुना है

माला  तो  करमें  फिरे,  जीभ  फिरे  मुख  माहिं ।
मनवाँ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ॥

‘भजन होगा नहीं’यह कहाँ लिखा है ? यहाँ तो ‘सुमिरन नाहिं’ऐसा लिखा है । सुमिरन नहीं होगा, यह बात तो ठीक है; क्योंकि ‘मनवा तो चहुँ दिसि फिरे’ मन संसारमें घूमता है तो सुमिरन कैसे होगा ? सुमिरन मनसे होता है; परन्तु ‘यह तो जप नाहिं’ऐसा कहाँ लिखा है ? जप तो हो ही गया । जीभमात्रसे भी अगर हो गया तो नाम-जप तो हो ही गया ।

हमें एक सन्त मिले थे । वे कहते थे कि परमात्माके साथ आप किसी तरहसे ही अपना सम्बन्ध जोड़ लो । ज्ञानपूर्वक जोड़ लो, और मन-बुद्धिपूर्वक जोड़ लो तब तो कहना ही क्या है ? और नहीं तो जीभसे ही जोड़ लो । केवल ‘राम’ नामका उच्‍चारण करके भी सम्बन्ध जोड़ लो । फिर सब काम ठीक हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे