।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
श्रीदुर्गाष्टमीव्रत, श्रीदुर्गानवमीव्रत, 
महात्मा गाँधी-जयन्ती
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

          ‘राम’ नाममें भगवान् शंकरका विशेष प्रेम है । नामके प्रभावसे ही पार्वतीको उन्होंने अपना भूषण बना लिया ।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको ।
कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥
                                        (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ८)

वे नामके प्रभावको ठीकसे जानते हैं । समुद्रका मंथन किया गया, उसमेंसे सबसे पहले जहर निकला तो सब देवता-असुर घबरा गये । उन्होंने भगवान् शंकरको याद किया और कहा‘भोले बाबा ! दुनिया मर रही है, बचाओ !’ उन्होंने ‘राम’ नामके सम्पुटमें उस हलाहल जहरको कंठमें रख लिया । ‘रा’ लिखकर बीचमें जहर रख लिया और ऊपर ‘म’ लिख दिया तो अमृतका काम कर दिया उस जहरने । जो स्पर्श करनेसे भी मार दे ऐसा हलाहल जहर । उससे भगवान् शंकर नीलकंठ हो गये । जहर तो अपना काम करे ही । बस, कंठमें ही उसको रोक लिया । जहर बाहर आ जाय तो मुँह कड़वा कर दे और भीतर चला जाय तो मार दे । ऐसे ‘राम’ नामने शिवजीको अमर बना दिया । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं

सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू ।
लोक लाहु   परलोक   निबाहू ॥
                                     (मानस, बालकाण्ड, दोहा २० । २)
सुमिरन करनेमें रामनाम कठीन नहीं है । राऔर ’—ये दोनों अक्षर उच्चा रण करनेमें सुगम हैं; क्योंकि ये अक्षर अल्पप्राण हैं । जिनमें प्राण कम खर्च होते हैं, वे अल्पप्राण कहे जाते हैं । का उच्चावरण जितना सुगमतासे कर सकते हैं, उतना का नहीं कर सकते; क्योंकि महाप्राण है । जैसे ख, , , , प्रत्येक वर्गका दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण है । बहुत समयतक कह सकते हैं, पर इतने समयतक नहीं कह सकते । बहुत जल्दी खतम हो जायेंगे प्राण; क्योंकि महाप्राण है वह । पाँचवाँ अक्षर (, , , , )—अल्प प्राण हैं और यणश्चाल्पप्राणाः , , , व भी अल्पप्राण है । अल्पप्राणवाला अक्षर उच्चा्रण करनेमें सुगम होता है और उसका उच्चाणरण भी ज्यादा देर हो सकता है । महाप्राणवाले अक्षरामें बहुत जल्दी प्राण खतम हो जाते हैं । अतः अल्पप्राणवाले अक्षरोंके समान दूसरे नाम उतनी देरतक नहीं ले सकते । इस कारण रामनाम अल्पप्राण होनेसे उच्चारण करनेमें सुगम है ।
नाममें अरुचिका कारण
वाल्मीकिजीको अल्पप्राणवाला नाम भी क्यों नहीं आया ? कारण क्या था ? ध्यान दें ! ‘राम’ नाम उच्‍चारण करनेमें सुगम है; परन्तु जिसके पाप अधिक हैं, उस पुरुषद्वारा नाम-उच्‍चारण कठीन हो जाता है । एक कहावत है

मजाल क्या है जीव की, जो राम-नाम लेवे ।
पाप  देवे थाप  की,  जो   मुण्डो  फोर  देवे ॥

जिनका अल्प पुण्य होता है, वे ‘राम’ नाम ले नहीं सकते । श्रीमद्भगवद्गीतामें आया है

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता   भजन्ते  मां दृढव्रताः ॥
                                               (७ । २८)

                जिनके पाप नष्ट हो गये हैं, वे ही दृढ़व्रत होकर भगवान्‌के भजनमें लग सकते हैं ।

   (अपूर्ण)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे