।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७१, मंगलवार
धनतेरस, धन्वन्तरी-जयन्ती
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जैसे, धन कमानेवालोंके पास धन ज्यादा बढ़ जाता है तो उनके धनका लोभ भी बढ़ता जाता है । परन्तु अन्तमें वह पतन करता है, क्योंकि धन नाशवान् वस्तु है । मानो साधारण आदमीके धनका अभाव थोड़ा होता है । धनी आदमीके अभाव ज्यादा होता है । साधारण आदमीके सैकड़ोंका, धनीके हजारोंका, अधिक धनीके लाखोंका और उससे भी बड़े धनीके करोड़ोंका घाटा होता है । वैसे ही भजन करनेवालोंके भी भजनकी जरूरत होती है । जो इसकी महिमा जानते हैं, उन्हें बहुत बड़े अभावका अनुभव होता है कि हमारे भजन बहुत कम हुआ । परन्तु जो लोग भजन नहीं करते हैं, उन्हें पता ही नहीं, वे इसके माहात्म्यको जानते ही नहीं । परन्तु वे ज्यों ही अपनेमें कमी समझते है, त्यों ही भजनका माहात्म्य समझमें आता है । ऐसे माहात्म्यको समझनेवालोंके लिये लिखा है कि नामके उच्‍चारणमात्रसे कल्याण हो जाय ।

‘भगवन्नाम-कौमुदी’ नामक एक ग्रन्थ है । उसमें बड़े शास्त्रार्थ-दृष्टिसे विवेचना की गयी है । नामका उच्‍चारण करनेवाले नामके पात्र माने गये हैं । जैसे गजेन्द्रने आर्त होकर भगवान्‌का नाम लिया तो भगवान्‌ प्रत्यक्ष प्रकट हो गये । आर्त होकर जो नाम लिया जाता है, उसका बहुत जल्दी महत्त्व दीखता है । ऐसे ही भावपूर्वक नाम लिया जाता है, उसका विलक्षण ही असर होता है । एक पदमें आता है
कृष्ण नाम जब श्रवण सुने री मैं आली ।
भूली री भवन हौं तो बावरी भयी री ॥

जिन गोपिकाओंके हृदयमें भगवान्‌का प्रेम है, वे उनका नाम सुननेसे ही पागल हो जाती हैं । पता ही नहीं कि स्वयं मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ ! ऐसे ही भगवन्नामसे ऐसी दशा हो जाती है । ‘कल्याण’ के भूतपूर्व सम्पादक भाई श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारकी नाम-निष्ठा अच्छी थी । कल्याण शुरू नहीं हुआ था, उस समयकी बात है । किसीने कह दिया‘राम नाम लेनेसे क्या होता है ?’ तो उन्होंने कहा‘कल्याण’ हो जाता है ।’ उसने कहा‘अर्थ समझे बिना क्या है ?’ ‘राम’ नाम अंग्रेजीमें मेढा और भेड़ाका भी है ।’ तब उन्होंने जोशमें आकर कह दिया, ‘राम-नामसे कल्याण होता है ।’ ऐसे जोशमें आकर कहनेसे उन्हें आठ पहरतक होश नहीं आया । खाना-पीना, टट्टी-पेशाब सब बन्द । इस बातसे उनकी माँजी बड़ी दुःखी हो गयीं कि हनुमानको क्या हो गया ? ऐसे जो भगवान्‌का नाम लेता है, उसमें बहुत विलक्षणता आ जाती है ।
नाम-जपका अनुभव

जिसकी नाममें रुचि होती है, उसे पता लगता है कि नामकी महिमा क्या होती है ? दूसरेको क्या पता नाम क्या चीज है ? हरेक आदमी क्या समझे ? नाममें रुचि ज्यादा होती है जप करनेसे, भजन करनेसे और उसमें तल्लीन होनेसे । सन्त-महात्माओंकी वाणीमें जो बातें आती हैं, वे विलक्षण बातें स्वयं अनुभवमें आने लगती हैं । सन्तोंने अलग-अलग स्थानोंपर अपना अलग-अलग अनुभव लिखा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे