।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७१, बुधवार
श्रीहनुमत्-जयन्ती, नरकचतुर्दशी
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक बहन थी । उसने अपने नाम-जपकी ऐसी बातें बतायीं, जो सन्तोंकी वाणीमें भी मिलती नहीं । उसने कहा कि नाम जपते-जपते शरीरमें ठण्डक पहुँचती है । सारे शरीरमें ठण्डा-ठण्डा झरना बहता है तथा एक प्रकारके मिठास और आनन्दकी प्राप्ति होती है । मैंने सन्तोंकी वाणी पढ़ी है, पर ऐसा वर्णन नहीं आता, जैसा उस बहनने अपना अनुभव बताया । ऐसे-ऐसे अलौकिक चमत्कार सन्त-महात्माओंने थोड़े-थोड़े ही लिखे हैं । वे कहाँतक लिखें ? जो अनुभव होता है, वो वर्णन करनेमें आता नहीं । वे खुद ही जानते हैं ।

सो सुख जानइ मन अरु काना ।
नहिं रसना पहिं जाइ बखाना ॥

वह कहनेमें नहीं आता । आप इसमें लग जायँ । भाइयोंसे, बहनोंसे, सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप नाम-जपमें लग जायँ । आप निहाल हो जायेंगे और दुनिया निहाल हो जायगी । सबपर असर पड़ेगा और आपका तो क्या कहें, जीवन धन्य हो जायगा । ‘भगवन्नाम’ की अपार महिमा है । गोस्वामीजी महाराज आगे वर्णन करते हैं

बरषा रितु रघुपति भगति  तुलसी सालि सुदास ।
राम नाम बर  बरन  जुग   सावन  भादव  मास ॥
                                         (मानस, बालकाण्ड १९)

पहले ‘राम’ नामके अवयवोंका वर्णन हुआ फिर ‘महामन्त्र’ क वर्णन हुआ । अब दो अक्षरोंका वर्णन होता है । ‘रा’ और ‘म’ये दो अक्षर हैं । जो भगवान्‌के प्यारे भक्त हैं, वे सालि (बढ़िया चावल) की खेती हैं और वर्षा-ऋतु श्रीरघुनाथजी महाराजकी भक्ति है । वर्षा-ऋतुमें खूब वर्षा हुआ करती है । चावलोंकी खेती, बाजरा आदि अनाजोंकी खेतीसे भिन्न होती है । राजस्थानमें खेतमें यदि पानी पड़ा रहे तो घास सुख जाय, पर चावलके खेतमें हरदम पानी भरा ही रहता है । जिससे खेतमें मछलियाँ पैसा हो जाती हैं । सालिके चावल बढ़िया होते हैं । चावल जितने बढ़िया होते हैं, उतना ही पानी ज्यादा माँगते हैं । उनको पानी हरदम चाहिये ।

‘रा’ और ‘म’ये दो श्रेष्ठ वर्ण हैं । ऐसे ही श्रावण और भाद्रपद इन दो मासोंकी वर्षा-ऋतु कही जाती है । श्रेष्ठ भक्तके यहाँ ‘राम’ नामरूपी वर्षकी झड़ी लगी रहती है । आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं
आखर   मधुर   मनोहर    दोऊ ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥
                                         (मानस, बालकाण्ड २० । १)

ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘मधुर’ कहनेका मतलब है कि रसनामें रस मिलता है । ‘मनोहर’ कहनेका तात्पर्य है कि मनको अपनी ओर खींच लेता है । जिन्होंने ‘राम’ नामका जप किया है, उनको इसका पता लगता है, और आदमी नहीं जान सकते । विलक्षण बात है कि ‘राम-राम’ करते-करते मुखमें मिठास पैदा होता है । जैसे, बढ़िया दूध हो और उसमें मिश्री पीसकर मिला दी जाय तो वह कैसा मीठा होता है, उससे भी ज्यादा मिठास इसमें आने लगता है । ‘राम’ नाममें लग जाते हैं तो फिर इसमें अद्भुत रस आने लगता है । ऐसे ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’ये दोनों अक्षर वर्णमालाकी दो आँखें हैं । शरीरमें दो आँखें श्रेष्ठ मानी गयी है । आँखके बिना जैसे आदमी अन्धा होता है, ऐसे ‘राम’ नामके बिना वर्णमाला भी अन्धी है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे