।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
अन्नकूट, गोवर्धनपूजा
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रीरामचरितमानसमें चार संवाद आये हैं१. पार्वतीजी एवं शंकरभगवान्‌का, २. याज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजीका, ३. कागभुशुण्डिजी और गरुड़जीका तथा ४. सन्तों और गोस्वामीजी महाराजका संवाद । यहाँ गोस्वामीजी महाराज सन्तोंको नाम-महिमा सुनाते हुए कह रहे हैं कि ये दोनों अक्षर ऐसे सुन्दर और प्यारे हैं, जैसे तुलसीको राम और लखन प्यारे लगते हैं । रामचरितमानस समाप्त हुई, तब रघुवंशी रामजी और उनके नामइन दोनोंके विषयमें एक बात कही है

कामिहि नारि पिआरि जिमि  लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि   रघुनाथ   निरन्तर   प्रिय    लागहु  मोहि  राम ॥
                                                          (मानस, उत्तरकाण्ड १३० ख)

दोनों उदाहरण ऐसे दिये, जिनको हरेक आदमी समझ सके और जिसमें हरेक आदमीका मन खींचे । सिद्धान्त समझाना हो तो दृष्टान्त  वही दिया जाता है, जो हरेक आदमीके अनुभवमें आता हो । परन्तु यहाँ गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‘राम लखन सम प्रिय तुलसी के’हरेक आदमीको क्या पता कि तुलसीको राम और लक्ष्मण किस तरह प्यारे लगते हैं ? राम-लक्षमण उसको भी प्यारे लगें, तब वह समझे कि ‘राम’ नाम कितना प्यारा हैं ! इतने ऊँचे कवि होकर कैसा दृष्टान्त देते हैं । अब हम क्या समझें, तुलसीको कैसे प्यारे लगते हैं ? तो कहते हैंकामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम’जैसे कामीको स्त्री प्यारी लगती है और लोभीको दाम प्यारा लगता है, ऐसे मेरेको राम प्यारे लगें । ‘तिमि रघुनाथ निरन्तर प्रिय लागहु मोहि राम’गोस्वामीजी महाराजने दो नाम लिये । ‘कामिहि नारि पिआरी जिमि’में लिख दिया ‘रघुनाथ’ और ‘लोभिहि प्रिय जिमि दाम’में लिख दिया ‘राम’ नाम । कामीको सुन्दररूप अच्छा लगता है और लोभीको दाम प्यारे लगते हैं । वह सुन्दरताकी ओर नहीं देखता । वह गिनती देखता है । उसको गिनती अच्छी लगती है । रघुवंशियोंके मालिक महाराजाधिराज श्रीराम विराजमान हैं, ऐसा उनका रूप और ‘राम’ नामये दोनों प्यारे लगें अर्थात् भगवान्‌का स्वरूप और भगवान्‌का नामये दोनों प्यारे लगें । एक कविने कहा है

सुवरण को ढूँढ़त फिरत कवि व्यभिचारी चोर ।
चरन धरत धड़कत हियो  नेक  न भावत शोर ॥

कवि, व्यभिचारी और चोरये तीनों ही ‘सुवर्ण’ ढूँढ़ते हैं । व्यभिचारी सुन्दर स्वरूपको ढूँढ़ता है और चोर सोना ढूँढ़ता है । ‘चरण धरत धड़कत हियो’कवि भी किसी श्लोकाका चरण रखता है तो उसका हृदय धड़कता है । मानो उसके यह भाव आता है कि श्लोक बढ़िया लिखा गया या नहीं । श्लोकके चार चरण होते हैं । व्यभिचारी और चोरका  भी चरण रखते हृदय धड़कता है कि कोई देख न ले । ‘नेक न भावत शोर’न कविको हल्ला-गुल्ला सुहाता है, न व्यभिचारीको और न चोरको । इस तरह तीनों ‘सुवर्ण’ को ढूँढ़ते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे