।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७१, बुधवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

धनके अभिमानके विषयमें कविने विचित्र बात कही है‒

हाकम जिन दिन  होय  विधि  षट्  मेख  बनावे ।
दोय  श्रवणमें  दिये  शबद   नहीं  ताहि  सुनावे ॥
एक मेख मुख माय   विपति  किणरी  नहीं  बूझे ।
दोय मेख चख मांय   सबल  निरबल  नहीं  बूझे ॥
पद हीन होय हाकम  परो छठी मेख तल द्वार में ।
पांचों ही मेख  छिटके परी  सरल  भये  संसारमें ॥

जब आदमी बड़ा हो जाता है, तो वह किसीकी कुछ सुनता नहीं, उसको दीखता नहीं और वह गूँगा हो जाता है । उसके छः प्रकारकी मेख लग जाती है । दो मेख कानमें लगती हैं, जिससे शब्द सुनायी नहीं देता । कोई पुकार करे कि अन्नदाता ! हमारे अमुक आफत आ गयी, आप कृपा करो, हमारे ऐसा बड़ा दुःख है ।कानसे बात सुननेमें आनी चाहिये न ? परंतु वह सुनवायी करता ही नहीं, कानमें मेख लग गयी, अब सुने कहाँसे ? ऐसे ही दो और मेख आँखोंमें लगनेसे सबल निरबल नहीं बूझे’ ‘दे दो दण्ड इसको, जुर्माना लगा दो इतना !’ ‘अरे भाई ! कितना गरीब है, कैसे दे सकेगा ?’ ‘कैद कर दो’शब्दमात्र कहते क्या जोर आया ? और एक मेख मुख माय विपति किणरी नहीं बूझेदुःखी हो कि सुखी, क्या हो, तुम्हारी दशा कैसी है ? तुम्हारे कोई तकलीफ तो नहीं है‒ऐसी बात पूछता ही नहीं । ये मेखें खुल जाती हैं फिर सरल भये संसारमेंतब वह सीधा सरल हो जाता है ।

संतद्वारा सेठको शिक्षा

एक सेठकी बात सुनी । वह सेठ बहुत धनी था । वह सुबह जल्दी उठकर नदीमें स्नान करके घर आकर नित्य-नियम करता था । ऐसे वह रोजाना नहाने नदीपर आता था । एक बार एक अच्छे संत विचरते हुए वहाँ घाटपर आ गये । उन्होंने कहा‒सेठ ! राम-राम !वह बोला नहीं तो फिर बोले‒सेठ ! राम-राम !ऐसे दो-तीन बार बोलनेपर भी सेठ राम-रामनहीं बोला । सेठने समझा कि कोई मँगता है । इसलिये कहने लगा‒‘हट ! हट ! चल, हट यहाँसे ।संतने देखा कि अभिमान बहुत बढ़ गया है, भगवान्‌का नाम भी नहीं लेता । मैं तो भगवान्‌का नाम लेता हूँ और यह हट कहता है ।

इन धनी आदमियोंके वहम रहता है कि हमारेसे कोई कुछ माँग लेगा, कुछ ले लेगा । इसलिये धनी लोग सबसे डरते रहते हैं । वे गरीबसे, साधुसे, ब्राह्मणसे, राज्यसे, चोरोंसे, डाकुओंसे डरते हैं । अपने बेटा-पोता ज्यादा हो जायँगे तो धनका बँटवारा हो जायगा‒ऐसे भी डर लगता है उन्हें ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे