।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

संतने सोचा कि इसे ठीक करना है । तो वे वैसे ही सेठ बन गये और सेठ बनकर घरपर चले गये । दरवानने कहा कि आज आप जल्दी कैसे आ गये ?’ तो उन्होंने कहा कि एक बहुरूपिया मेरा रूप धरके वहाँ आ गया था, मैंने समझा कि वह घरपर जाकर कोई गड़बड़ी नहीं कर दे । इसलिये मैं जल्दी आ गया । तुम सावधानी रखना, वह आ जाय तो उसे भीतर मत आने देना ।

सेठ घरपर जैसा नित्य-नियम करता था, वैसे ही वे सेठ बने हुए संत भजन-पाठ करने लग गये । अब वह सेठ सदाकी तरह धोती और लोटा लिये आया तो दरवानने रोक दिया । कहाँ जाते हो ? हटो यहाँसे !सेठ बोला‒तूने भाँग पी ली है क्या ? नशा आ गया है क्या ? क्या बात है ? तू नौकर है मेरा, और मालिक बनता है ।दरवानने कहा‒‘हट यहाँसे, नहीं जाने दूँगा भीतर ।सेठने छोरोंको आवाज दी‒‘आज इसको क्या हो गया ?’ तो उन्होंने कहा‒‘बाहर जाओ, भीतर मत आना ।बेटे भी ऐसे ही कहने लगे । जिसको पूछे, वे ही धक्का दें । सेठने देखा कि क्या तमाशा हुआ भाई ? मुझे दरवाजेके भीतर भी नहीं जाने देते हैं । बेचारा इधर-उधर घूमने लगा ।

अब क्या करें ? उसकी कहीं चली नहीं तो उसने राज्यमें जाकर रिपोर्ट दी कि इस तरह आफत आ गयी । वे सेठ राज्यके बड़े मान्य आदमी थे । राजाने उनको जब इस हालतमें देखा तो कहा‒‘आज क्या बात है ? लोटा, धोती लिये कैसे आये हो ?’ तो वह बोला‒‘कैसे-कैसे क्या, महाराज ! मेरे घरमें कोई बहुरूपिया बनकर घुस गया और मुझे निकाल दिया बाहर ।राजाने कहा‒‘चार घोड़ोंकी बग्घीमें आया करते थे, आज आपकी यह दशा !राजाने अपने आदमियोंसे पूछा‒‘कौन है वह ? जाकर मालूम करो ।घरपर खबर गयी तो घरवालोंने कहा कि  अच्छा ! वह राज्यमें पहुँच गया ! बिलकुल नकली आदमी है वह । हमारे सेठ तो भीतर विराजमान हैं । राजाको जाकर कहा कि वह तो घरमें अच्छी तरहसे विराजमान है । राजाने कहा‒‘सेठको कहो कि राजा बुलाते हैं ।अब सेठ चार घोड़ोंकी बग्घी लगाकर ठाट-बाटसे जैसे जाते थे, वैसे ही पहुँचे और बोले‒‘अन्नदाता ! क्यों याद फरमाया, क्या बात है ?’

राजाजी बड़े चकराये कि दोनों एक-से दीख रहे हैं । पता कैसे लगे ? मंत्रियोंसे पूछा तो वे बोले‒‘साहब, असली सेठका कुछ पता नहीं लगता ।तब राजाने पूछा‒आप दोनोंमें असली और नकली कौन हैं ?’ तो कहा‒परीक्षा कर लो ।जो सन्त सेठ बने हुए थे उन्होंने कहा‒बही लाओ । बहीमें जो लिखा हुआ है, वह हम बता देंगे ।बही मँगायी गयी । जो सेठ बने हुए संत थे, उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि अमुक-अमुक वर्षमें अमुक मकानमें इतना खर्चा लगा, इतना घी लगा, अमुकके ब्याहमें इतना खर्चा हुआ । वह हिसाब अमुक बहीमें, अमुक जगह लिखा हुआ है ।वह सब-का-सब मिल गया । सेठ बेचारा देखता ही रह गया । उसको इतना याद नहीं था । इससे यह सिद्ध हो गया कि वह सेठ नकली है । तो कहा कि‒इसे दण्ड दो ।पर संतके कहनेसे छोड़ दिया ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे