(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे बीड़ी-सिगरेट पीनेवाले लोग अपनी टोली बना लेते हैं, वैसे संत लोग भी कुछ-न-कुछ अपनी टोली बना लेते हैं । आप-से-आप उनकी टोली बन जाती
है । भजन करनेवाले इकट्ठे हो जाते हैं और भजनमें लग जाते हैं । बहुत युगोंसे यह परम्परा
चली आ रही है । बड़े-बड़े अच्छे महात्माओंको हुए सैकड़ों वर्ष हो गये; परंतु फिर
भी उनके नामसे उनके क्षेत्र चल रहे हैं । वहाँ भगवन्नाम-जप, स्मरण-कीर्तन, उपकार, दान, पुण्य, दुनियाका हित आदि होता रहता है । नाम-महाराजके प्रभावसे ऐसा
होता है । भगवान्का नाम अपने भक्त-जनोंका विशेष त्राता है, अर्थात् विशेषतासे रक्षा करनेवाला है ।
भगति सुतिय कल करन बिभूषन ।
जग हित बिमल बिधु पूषन ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २० । ६)
‘र’ और ‘म’‒ये दोनों अक्षर भक्तिरूपिणी
जो श्रेष्ठ स्त्री है, उसके कानोंमें सुन्दर कर्ण-फूल हैं । हाथोंमें भूषण होते हैं
और पैरोंके भी भूषण होते हैं, फिर यहाँ केवल कर्ण-भूषण कहनेका
क्या तात्पर्य ? कानोंसे ‘राम’ नाम सुननेसे भक्ति उसके हृदयमें आ जाती है । इसलिये ‘राम’ नाम भक्तिके कर्ण-भूषण हैं । भक्तिको हृदयमें बुलाना
हो तो ‘राम’ नामका जप करो । इससे भक्ति दौड़ी चली आयेगी । भीतर विराजमान हो
जायगी और निहाल कर देगी ।
‘जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन’‒चन्द्रमा और सूर्य‒ये दो भगवान्की
आँखें हैं । दोनों रात-दिन प्रकाश करते हैं । इन दोनोंसे जगत्का हित होता है ।
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्न्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
(गीता १५ । १२)
सूर्यके प्रकाशसे एवं गर्मीसे वर्षा होती है और उससे खेती होती
है ।
‘तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च’‒ सूर्यभगवान् वर्षा करते हैं
। वर्षाके होनेसे धान बढ़ता है, घास बढ़ती है, खेती बढ़ती है । खेतीमें जहरीलापन सुखाकर पकानेमें सूर्यभगवान् हेतु होते हैं और
खेतीको पुष्ट करनेमें चन्द्रमा हेतु होते हैं । खेती करनेवाले कहा करते हैं कि अब चान्दना
(शुक्ल) पक्ष आ गया, अब खेती बढ़ेगी; क्योंकि चन्द्रमा अमृतकी वर्षा
करते हैं, जिससे फल-फूल लगते हैं और बढ़ते हैं ।
वायुमण्डलमें जो जहरीलापन होता है, उसको सूर्यका ताप नष्ट कर देता है । कभी वर्षा नहीं होती, अकरी आ जाती है तो लोग कहते हैं‒झांझली आ गयी । वह झांझली भी आवश्यक होती है, नहीं तो यदि हरदम वर्षा होती रहे तो वायुमण्डलमें, पौधोंमें जहरीलापन पैदा हो जाता है । इस जहरीलेपनको सूर्य नष्ट कर देता है । इसलिये
सूर्य पोषण करता है और चन्द्रमा अमृत-वर्षा करता है । गोस्वामीजी दोनों प्रकारको ऋतुओंका
वर्णन आगे करेंगे ।
(शेष
आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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