।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७१, रविवार

मानसमें नाम-वन्दना



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

जैसे बीड़ी-सिगरेट पीनेवाले लोग अपनी टोली बना लेते हैं, वैसे संत लोग भी कुछ-न-कुछ अपनी टोली बना लेते हैं । आप-से-आप उनकी टोली बन जाती है । भजन करनेवाले इकट्‌ठे हो जाते हैं और भजनमें लग जाते हैं । बहुत युगोंसे यह परम्परा चली आ रही है । बड़े-बड़े अच्छे महात्माओंको हुए सैकड़ों वर्ष हो गये; परंतु फिर भी उनके नामसे उनके क्षेत्र चल रहे हैं । वहाँ भगवन्नाम-जप, स्मरण-कीर्तन, उपकार, दान, पुण्य, दुनियाका हित आदि होता रहता है । नाम-महाराजके प्रभावसे ऐसा होता है । भगवान्‌का नाम अपने भक्त-जनोंका विशेष त्राता है, अर्थात् विशेषतासे रक्षा करनेवाला है ।

भगति सुतिय कल करन बिभूषन ।
जग  हित   बिमल   बिधु   पूषन ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २० । ६)

और ’‒ये दोनों अक्षर भक्तिरूपिणी जो श्रेष्ठ स्त्री है, उसके कानोंमें सुन्दर कर्ण-फूल हैं । हाथोंमें भूषण होते हैं और पैरोंके भी भूषण होते हैं, फिर यहाँ केवल कर्ण-भूषण कहनेका क्या तात्पर्य ? कानोंसे रामनाम सुननेसे भक्ति उसके हृदयमें आ जाती है । इसलिये रामनाम भक्तिके कर्ण-भूषण हैं । भक्तिको हृदयमें बुलाना हो तो रामनामका जप करो । इससे भक्ति दौड़ी चली आयेगी । भीतर विराजमान हो जायगी और निहाल कर देगी ।

जग हित हेतु बिमल बिधु पूषनचन्द्रमा और सूर्य‒ये दो भगवान्‌की आँखें हैं । दोनों रात-दिन प्रकाश करते हैं । इन दोनोंसे जगत्‌का हित होता है ।

यदादित्यगतं   तेजो   जगद्‌भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्न्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
                                                (गीता १५ । १२)

सूर्यके प्रकाशसे एवं गर्मीसे वर्षा होती है और उससे खेती होती है ।

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च सूर्यभगवान् वर्षा करते हैं । वर्षाके होनेसे धान बढ़ता है, घास बढ़ती है, खेती बढ़ती है । खेतीमें जहरीलापन सुखाकर पकानेमें सूर्यभगवान् हेतु होते हैं और खेतीको पुष्ट करनेमें चन्द्रमा हेतु होते हैं । खेती करनेवाले कहा करते हैं कि अब चान्दना (शुक्ल) पक्ष आ गया, अब खेती बढ़ेगी; क्योंकि चन्द्रमा अमृतकी वर्षा करते हैं, जिससे फल-फूल लगते हैं और बढ़ते हैं ।


वायुमण्डलमें जो जहरीलापन होता है, उसको सूर्यका ताप नष्ट कर देता है । कभी वर्षा नहीं होती, अकरी आ जाती है तो लोग कहते हैं‒झांझली आ गयी । वह झांझली भी आवश्यक होती है, नहीं तो यदि हरदम वर्षा होती रहे तो वायुमण्डलमें, पौधोंमें जहरीलापन पैदा हो जाता है । इस जहरीलेपनको सूर्य नष्ट कर देता है । इसलिये सूर्य पोषण करता है और चन्द्रमा अमृत-वर्षा करता है । गोस्वामीजी दोनों प्रकारको ऋतुओंका वर्णन आगे करेंगे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे