(गत ब्लॉगसे आगेका)
दोनों पक्षोंमें चन्द्रमाका प्रकाश समान ही रहता है, पर एक पक्षमें घटता है और दूसरेमें बढ़ता है‒ऐसा लोग मानते हैं । रोजाना रात और
दिनमें चन्द्रमाकी घड़ियाँ मिलाकर देखी जायँ तो बराबर होती हैं । इसी प्रकार आजकी आधी
रातसे दूसरे दिन आधी राततक आठ पहरकी घड़ियोंका १५ दिनोंका मिलान करनेसे शुक्लपक्ष और
कृष्णपक्षके पंद्रह दिनोंमें प्रकाशको और अन्धेरेकी घड़ियाँ बराबर आयेंगी । फिर यह शुक्ल
और कृष्णपक्ष क्या है ? चन्द्रमा शुक्लपक्षमें पोषण
करता है, अमृत बरसाता है, जिससे वृक्षोंके फल बढ़ते हैं, बहनों-माताओंके गर्भ बढ़ते हैं और उन सबको पोषण मिलता है । चन्द्रमासे सम्पूर्ण
बूटियोंमें विलक्षण अमृत आता है और सूर्यसे वे पकती हैं । जैसे सूर्य और चन्द्रमा सम्पूर्ण
जगत्का हित करते हैं, वैसे ही भगवान्के नामके जो ‘र’ और ‘म’ दो अक्षर हैं, वे सब तरहसे पोषण करनेवाले हैं ।
‘जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन’‒यह ‘राम’ नाम विमल है । चन्द्रमा और सूर्यपर राहु और केतुके आनेसे ग्रहण होता है, परंतु ‘राम’ नामपर ग्रहण नहीं आता । चन्द्रमा
घटता-बढ़ता रहता है, पर राम तो बढ़ता ही रहता है । ‘राम कभी फूटत नाहीं’ यह फूटता नहीं, रात-दिन बढ़ता ही रहता है । यह सदा ही शुद्ध है, इसलिये जगत्के हितके लिये निर्मल चन्द्रमा और सूर्यके समान है ।
भगवान्के नामके दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ हैं, जिनकी महिमा गोस्वामीजी महाराज कह रहे हैं । यह महिमा ठीक समझमें तब आती है, जब मनुष्य नाम-जप करता है । भगवान्ने कृपा कर दी, यह मनुष्य-शरीर दे दिया, सत्संग सुननेको मिल गया । अब
नाम-जपमें लग जाओ । इस जमानेमें जो थोड़ा भी जप करते हैं, उनकी बड़ी भारी महिमा है । कलियुगमें सब चीजोंके दाम बढ़ गये तो क्या भगवन्नामके
दाम नहीं बड़े हैं ? अभी भजनकी महिमा अन्य युगोंकी अपेक्षा बहुत ज्यादा बढ़ी है ।
चहुँजुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ ।
कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २२ । ८)
राम ! राम
!! राम !!!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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