।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७१, बुधवार

मानसमें नाम-वन्दना


                 

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

बिना  बिचारे  जो  करे  सो पाछे पचछताय,
काज  बिगारे  आपना  जगमें  होत  हँसाय ।
जगमें  होत  हँसाय  चित्तमें  चैन   न   पावे,
राग रंग  सन्मान  ताहिके  मन  नहिं  भावे ।
कह गिरधर कविराय करम  गति टरे न टारे,
खटकत है हिय माँहि करे जो बिना बिचारे ॥

बिना विचार किये काम करनेसे आगे दुःख पाना पड़ता है और वह बात हृदयमें भी खटकती रहती है । मनुष्य अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग कर दे और दूसरोंके हितके लिये काम करे तो उसका जीवन सफल हो जाय । सात्त्विक वृत्तियोंकी मुख्यता रखकर अर्थात् विचारपूर्वक प्रत्येक कार्य करना चाहिये । लोग भोजन करते हैं तो दुःख, शोक और रोग देनेवाले राजसी भोजनमें प्रवृत्त होते हैं । जान-बूझकर कुपथ्य कर लेते हैं । छोटे-से जीभके टुकड़ेके वशमें होकर साढ़े तीन हाथके शरीरका नुकसान कर लेते हैं । अगर विवेक होता तो शरीरका नाश क्यों कर लेते ? इतना ही नहीं, अभक्ष्य-भक्षण करके नरकोंकी तैयारी कर लेते हैं ।

रामनामकी महिमा कहते हुए गोस्वामीजी कहते हैं‒सुगति रूपी जो सुधा है, यह सदाके लिये तृप्त करनेवाली है । सदाके लिये लाभ हो जाय, जिस लाभके बादमें कोई लाभ बाकी नहीं रहता, जहाँ कोई दुःख पहुँच ही नहीं सकता है । ऐसे महान् आनन्दको प्राप्त करानेवाली जो श्रेष्ठ गति है, उसका रस रामनामका जप करनेसे आता है । जो रामनामसे तृप्त हो जाते हैं, वे फिर सांसारिक भोगोंमें फँसेंगे नहीं । उनसे कहना नहीं पड़ेगा कि पाप-अन्याय मत करो । उनकी पाप-अन्यायमें रुचि रहेगी ही नहीं । जिनको भगवन्नामका रस नहीं मिला है, वे धन इकट्ठा करने और भोग-भोगनेमें लगे हैं ।

सज्जनो ! माताओ-बहनो ! भगवान्‌के नाममें रस लो, इसमें तल्लीन हो जाओ । रात-दिन इसमें लग जाओ । आप-से-आप पाप-अन्याय छूट जायगा । निषिद्ध आचरणोंसे स्वतः ही ग्लानि हो जायगी । अभी मलिनता अच्छी लगती है, बुरी नहीं लगती, कारण क्या है ? अन्तःकरण मैला है । जो खुद मैला है, उसे मैली चीज ही अच्छी लगेगी । मक्खियाँ मिठाईपर तभीतक बैठी रहती हैं कि जबतक मैलेकी टोकरी पाससे होकर न निकले । मुँहपर मक्खियाँ बैठने लगें तो बढ़िया सुगन्धवाला इत्र थोड़ा-सा लगा लो फिर मक्खियाँ नहीं आयेंगी; क्योंकि उनको सुगन्धि सुहाती ही नहीं । मक्षिका व्रणमिच्छन्तिवे तो घावपर जहाँ पीप-खून मिले, वहाँ बैठेंगी । ऐसे ही जिसका मन अशुद्ध होता है, वह ही मलिन वस्तुओंकी तरफ आकृष्ट होता है । भगवान्‌के नाम-रूपी सुगन्धके मिलनेपर फिर मैली वस्तुओंकी तरफ मन नहीं जायगा ।

सज्जनो ! यह बड़ा सुगम उपाय है । भगवान्‌के नामका जप करो और प्रभुके चरणोंका सहारा रखो । जैसे साधारण मनुष्य धन कमाने और भोग-भोगनेमें रस लेते हैं, वैसे ही भगवत्प्रेमीको भगवन्नाम, सत्संग और सत्-शास्त्रोंके अध्ययनमें रस लेना चाहिये । इस रसके लिये ही मानव जीवन मिला है जिसे रामनाम लेनेमें रस आने लगेगा, वह रात-दिन नाम-जपमें लग जायगा, फिर वह संसारके विषयोंमें फंसेगा ही कैसे ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे