।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७१, रविवार
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                  

 (३० नवम्बरके ब्लॉगसे आगेका)

ये नाम महाराज भक्तोंके मनरूपी सुन्दर कमलमें विहार करनेवाले भौंरेके समान हैं और जीभरूपी यशोदाजीके लिये श्रीकृष्ण और बलरामजीके समान आनन्द देनेवाले हैं । भक्तोंका मन बहुत सुन्दर कमलके समान है, उसके ऊपर राम, राम, राम......नामरूपी भँवरे मँडरा रहे हैं । ये मनके ऊपर बैठे हैं । मन हरदम भगवान्‌के नाममें लगा हुआ है । इस कारण भक्तोंको दूसरी चीज सुहाती नहीं । भगवन्नाममें यदि कोई बाधा लगती है तो वह उन्हें सुहाती नहीं है ।

भजनानंदी संत

जोधपुरमें श्रीबुधारामजी महाराज हुए हैं । बागर’ में उनका रामद्वारा है । वे माताजीसहित वहाँ रहते थे । इनको खेड़ापा महाराजका उपदेश हो गया तो रात-दिन रामनाम जपमें लग गये । जब रसोई बनकर तैयार हो जाती तो माँ कह देती‒‘बेटा ! रोटी बन गयी है ।’ तब वे आकर भोजन कर लेते, फिर वैसे ही राम, राम.....करने लग जाते । एक बार वे अपनी माँसे बोले‒‘माँ रोटी मत बनाया कर । रोटी चबानेमें जितना समय लगता है, उतना समय नाम-जपके बिना चला जाता है, इसलिये तू खिचड़ी या खीचडा बना दिया कर ।’ अब खिचड़ी परोसे तो वह बहुत देरतक गरम रहती थी । तो कहा‒‘माँ, जब ठण्डी हो जाय, तब मेरेको कहा कर । अब इस अन्नकी उपासना कौन करे, देर लगती है ।’ फिर एक दिन कहा‒‘माँ राबड़ी बना दिया कर ।’ माँ आटा घोलकर राबड़ी बना देती । वह ठण्डी होनेपर गट-गट पी लेते । फिर राम, राममें लगे रहते ।

भजन करनेमें लगे हुएको भोजन करनेमें समय लगाना ठीक नहीं लगता है । अब स्वाद तो ले ही कौन ? क्या बढ़िया देखे और क्या घटिया ? प्राणोंको रखना है, इसलिये अन्नकी खुराक दे दो‒

कबीर छुधा है कूकरी   तन सों दई लगाय ।
याको टुकड़ा डालकर पीछे हरि गुण गाय ॥

गोस्वामीजी कहते हैं‒जीह जसोमति हरि हलधर से’‒माता यशोदाकी गोदमें कन्हैया और बलदाऊ‒दोनों खेलते हैं । भगवान्‌के भक्तोंकी जो जीभ है, वह यशोदाजीके समान है । उनकी गोदमें रा’ और म’ रूपी कन्हैया और दाऊ भैया खेल रहे हैं । बालकको माँकी गोदमें खेलनेमें आनन्द आता है । मनमें भँवरे’ रूपसे रामनाम है, जीभपर राम-नाम हरि हलधर से’ हैं । इसलिये भक्तलोग मनसे भी रामनाम और जीभसे भी रामनाम जपते रहते हैं । मनसे, वाणीसे, इन दोनों अक्षरोंमें तल्लीन होकर रात-दिन भजन करते हैं । किसी तरहकी कोई इच्छा, तृष्णा और वासना उनमें रहती ही नहीं । इस प्रकार इन र’ और म’ अक्षरोंकी महिमा कहाँतक कही जाय ! इनको लेनेसे ही इनका रस अनुभवमें आता है । इसलिये हर समय भगवन्नाम-जप करते ही रहना चाहिये ।

राम ! राम !! राम !!!
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे