।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७१, सोमवार
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                  

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रवचन- ५

वास्तवमें छत्रपति कौन?

एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ।
तुलसी रधुबर नाम के   बरन  बिराजत  दोउ ॥
                                  (मानस, बालकाण्ड, दोहा २०)

तुलसीदासजी महाराज कहते हैं‒श्रीरामजी महाराजके नामके‒ये दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं । इनमेंसे एक र’ छत्ररूपसे और दूसरा म’ (अनुस्वार) मुकुटमणिरूपसे सब अक्षरोंके ऊपर है । राजाके दो खास चिह्न होते हैं‒एक छत्र और एक मणि । मणि’ मुकुटके ऊपर रहती है और छत्र’ सिंहासनपर रहता है । राजाका खास श्रृंगार मणि’ होता है । वर्षा और धूपसे बचनेके लिये छाता सब लोग लगाते हैं, पर राजाका छत्र वर्षा और धूपसे बचनेके लिये नहीं होता । उससे उनकी शोभा है और छत्र’ के कारण वे छत्रपति कहलाते हैं ।

महाराजा रघुने विश्वजित् याग’ किया । उन्होंने अपने पास तीन चीजें ही रखीं‒एक छत्र और दो चँवर । और सब कुछ दे दिया, अपने पास कुछ भी नहीं रखा । संसारमात्रपर विजय करना विश्वजित् याग’ कहलाता है । संसारपर जीत कब होती है ? सर्वस्व त्याग करनेसे । संसारमें ऐसा देखा जाता है कि दूसरोंपर दबाव डालकर अपना राज्य बढ़ा लेनेवाला विजयी कहलाता है, पर वास्तवमें वह विजयी नहीं है । गीताने कहा है‒

इहैव  तैर्जितः  सर्गो   येषां  साम्ये  स्थितं  मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥
                                                             (५ । १९)

यहाँ जीवित अवस्थामें ही इस संसारपर वे लोग विजयी हो गये, जिनका मन साम्यावस्थामें स्थित हो गया । मानो हानि-लाभ हो, सुख-दुःख हो, अनुकूलता हो या प्रतिकूलता हो, पर जिनके चित्तपर कोई असर नहीं पड़ता, वे ज्यों-के-त्यों सम, शान्त, निर्विकार रहते हैं‒ऐसे लोग ही वास्तवमें संसारपर विजयी होते हैं ।

भाइयो ! बहनो ! आप खयाल करना । इस बातकी तरफ खयाल बहुत कम मनुष्योंका जाता है । लोग ऐसा समझते हैं कि हम बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे हैं । हमारे व्याख्यानमें बहुत आदमी आनेसे हम बड़े हो गये । इसमें थोड़ी सोचनेकी बात है वे बड़े हुए कि हम बड़े हुए ! अगर आदमी कम आवें तो हम छोटे हो गये । आदमी ज्यादा आवें या कम आवें, हममें योग्यता हो या अयोग्यता, धन आ जाय या चला जाय, हमारी निन्दा हो जाय या स्तुति हो जाय‒इनका हमारेपर कुछ भी असर न पड़े, तब हम बड़े हुए । नहीं तो हम बड़े कैसे हुए !
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे