।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७१, मंगलवार
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                  

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

वास्तवमें छत्रपति कौन होता है ? ‘रामनाम लेनेवाला छत्रपति होता है । भगवान्‌के नामके जो रसिक होते हैं, उनके पास धन आवे-न-आवे, मान हो जाय, अपमान हो जाय; उनको नरक हो जाय, स्वर्ग हो जाय, उनके कोई फर्क नहीं पड़ता । नाम महाराजका जिसके सहारा है; वही वास्तवमें छत्रपति है । उसकी हार कभी होती ही नहीं । वह सब जगह ही विजयी है; क्योंकि नाम लेनेवालेका स्वयं भगवान् आदर करते हैं और उसे महत्त्व देते हैं‒मैं तो हूँ भगतनको दास, भगत मेरे मुकुट मणि ।’ दुनियामें आप किसीके अधीन बनो तो वह आपको अपना गुलाम बना लेगा और आप बड़ा बन जायगा । पर आप भगवान्‌के दास बन जाओ तो भगवान् आपको अपनेसे बड़ा मानेंगे‒ऐसी क्षमता भगवान्‌में ही है और किसीमें नहीं है । भगवान्‌का नाम भगवान्‌से भी बड़ा बना देता है । भगवन्नाम भगवान्‌से भी बड़ा है । पाण्डवगीतामें आया है‒भगवान् शरण होनेपर मुक्ति देते हैं पर भगवान्‌का नाम ऐसा है जो उच्चारणमात्रसे मुक्ति दे देता है । इसलिये भगवान्‌का नाम बड़ा हुआ । इसका आश्रय लेनेवाला भी बड़ा हो जाता है, जैसे छत्रका आश्रय लेनेवाला छत्रपति हो जाता है ।

आजकल लोग धनसे धनपति, लखपति, करोड़पति कहलाते हैं‒यह वहम ही है । यदि लाख रुपये चले जायँ तो मुश्किल हो जाय । अचानक घाटा लग जाय तो हार्टफेल हो जाय । वह धनपति कैसे हुआ ? वह तो धनदास ही हुआ, धन उसका मालिक हुआ । धन महाराज चले गये, अब बेचारा दास कैसे बचे ? वास्तवमें वह धनपति नहीं है । वह यदि मर जाय तो कौड़ी एक भी साथ नहीं चले । साथमें चलनेवाला धन जिसके पास होता है, वह कभी भी छोटा नहीं होता । ऐसा रामनामरूपी धन जिसके पास है, वही असली धनपति है ।

संसारमें किसी वर्ण, आश्रम, विद्या, योग्यता, धन, बुद्धि, राज्य, पद, मान, आदर, सत्कार आदिमें कोई छोटा भी हो सकता है; परंतु वह यदि भगवान्‌का भजन करता है तो छोटा नहीं है; क्योंकि उसके मनमें संसारकी गुलामी नहीं रहती है । ऐसी जो सबसे बड़ी चीज है, वह सबको मुफ्तमें सुगमतासे मिल सकती है‒

जाट भजो गूजर भजो, भावे भजो अहीर ।
तुलसी रघुबर नाममें, सब काहू का सीर ॥

भगवान्‌के नामपर सबका हक लगता है । हजारों आदमी भगवान्‌के नामका जप करें तो एकको हजारवाँ हिस्सा भगवान्‌का मिलेगा‒यह बात नहीं है । सब-के-सब पूरे हकदार हैं । चाहे लाखों, करोड़ों, अरबों आदमी भजन करनेवाले हों, एक-एक आदमीको पूरा माहात्म्य मिलेगा । ऐसे नहीं कि एक-एकको हिस्सेवार माहात्म्य मिलेगा । सब-के-सब पूर्ण हो सकते हैं; क्योंकि भगवान्‌का नाम, उनकी महिमा, तत्त्व, प्रभाव, रहस्य, लीला आदि सब पूर्ण-ही-पूर्ण हैं ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे