(गत ब्लॉगसे आगेका)
सज्जनो ! ऐसे भगवान्के नामको छोड़कर धनके पीछे आपलोग
पड़े हैं । भोगोंके, मान-बड़ाईके और आरामके पीछे पड़े हैं । न ये चीजें
रहनेवाली हैं, न आराम और भोग रहनेवाले हैं, न मान-बड़ाई
रहनेवाली है, न वैभव रहनेवाला है । ये सब जानेवाले हैं और आप रहनेवाले
हो । फिर भी जानेवालेके गुलाम बन गये । बड़े दुःखकी बात है, पर
करें क्या ? भीतरमें यह बात जँची हुई है कि इनसे ही हमारी इज्जत
है । इनसे आपकी खुदकी बेइज्जती है, पर इधर दृष्टि ही नहीं जाती । मनुष्य यह खयाल ही नहीं करता कि इसमें इज्जत किसकी है ! सब
लोग ‘वाह-वाह’ करें‒इसमें आप अपनी इज्जत मानते हैं और कोई आदर नहीं करे,
उसमें आप अपनी बेइज्जती मानते हैं, यह अपनी खुदकी इज्जत नहीं
है । आप पराधीन होनेको इज्जत मानते हो ।
नाम और नामीकी महिमा
समुझत सरिस नाम अरु नामी ।
प्रीति परसपर प्रभु
अनुगामी ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । १)
समझनेमें नाम और नामी‒दोनों एक-से हैं;
परंतु दोनोंमें परस्पर स्वामी और सेवकके समान प्रीति है अर्थात्
नाम और नामीमें पूर्ण एकता होनेपर भी जैसे स्वामीके पीछे सेवक चलता है,
उसी प्रकार नामके पीछे नामी चलता है । भगवान् अपने नामका अनुगमन
करते हैं अर्थात् नाम लेते ही वहाँ जाते हैं ।
नाम और नामी‒दो चीज हैं । दीखनेमें दोनों बराबर दीखते हैं ।
जैसे मनुष्योंमें उनके नाम और खुद नामीमें परस्पर प्रीति रहती है,
ऐसे ‘राम’‒यह हुआ नाम और भगवान् रघुनाथजी महाराज हो गये नामी । नाम
लेनेसे श्रीरघुनाथजी महाराजका बोध होता है । दोनोंमें भेद न होनेपर भी एक फर्क है ।
वह क्या है ? ‘प्रभु अनुगामी’‒नाम महाराजके पीछे-पीछे राम महाराज चलते हैं । दोनों एक होनेपर
भी भगवान्का नाम भगवान्से आगे चलता है । रघुनाथजी महाराज अपने नामके पीछे चलते हैं
। यह कैसे ? भगवान्का नाम लेनेसे वहाँ भगवान् आ जाते हैं,
और भगवान्को आना ही पड़ता है, पर जहाँ भगवान्
जायँ, वहाँ उनका नाम आ जाय‒यह कोई नियम नहीं है । नामके बिना भगवान्को जान नहीं सकते
। इसलिये नाम आँख मीचकर लेते जाओ । वहाँ रघुनाथजी महाराज आ जायेंगे । प्रेमसे पुकारकी जाय तो भगवान् उसके आचरणोंकी ओर देखते ही नहीं
और बिना बुलाये ही आ जाते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |