।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७१, बुधवार
एकादशी-व्रत कल है
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                  

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

सज्जनो ! ऐसे भगवान्‌के नामको छोड़कर धनके पीछे आपलोग पड़े हैं । भोगोंके, मान-बड़ाईके और आरामके पीछे पड़े हैं । न ये चीजें रहनेवाली हैं, न आराम और भोग रहनेवाले हैं, न मान-बड़ाई रहनेवाली है, न वैभव रहनेवाला है । ये सब जानेवाले हैं और आप रहनेवाले हो । फिर भी जानेवालेके गुलाम बन गये । बड़े दुःखकी बात है, पर करें क्या ? भीतरमें यह बात जँची हुई है कि इनसे ही हमारी इज्जत है । इनसे आपकी खुदकी बेइज्जती है, पर इधर दृष्टि ही नहीं जाती । मनुष्य यह खयाल ही नहीं करता कि इसमें इज्जत किसकी है ! सब लोग वाह-वाह’ करें‒इसमें आप अपनी इज्जत मानते हैं और कोई आदर नहीं करे, उसमें आप अपनी बेइज्जती मानते हैं, यह अपनी खुदकी इज्जत नहीं है । आप पराधीन होनेको इज्जत मानते हो ।

नाम और नामीकी महिमा

समुझत सरिस नाम अरु नामी ।
प्रीति परसपर  प्रभु  अनुगामी ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । १)

समझनेमें नाम और नामी‒दोनों एक-से हैं; परंतु दोनोंमें परस्पर स्वामी और सेवकके समान प्रीति है अर्थात् नाम और नामीमें पूर्ण एकता होनेपर भी जैसे स्वामीके पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नामके पीछे नामी चलता है । भगवान् अपने नामका अनुगमन करते हैं अर्थात् नाम लेते ही वहाँ जाते हैं ।

नाम और नामी‒दो चीज हैं । दीखनेमें दोनों बराबर दीखते हैं । जैसे मनुष्योंमें उनके नाम और खुद नामीमें परस्पर प्रीति रहती है, ऐसे राम’‒यह हुआ नाम और भगवान् रघुनाथजी महाराज हो गये नामी । नाम लेनेसे श्रीरघुनाथजी महाराजका बोध होता है । दोनोंमें भेद न होनेपर भी एक फर्क है । वह क्या है ? ‘प्रभु अनुगामी’‒नाम महाराजके पीछे-पीछे राम महाराज चलते हैं । दोनों एक होनेपर भी भगवान्‌का नाम भगवान्‌से आगे चलता है । रघुनाथजी महाराज अपने नामके पीछे चलते हैं । यह कैसे ? भगवान्‌का नाम लेनेसे वहाँ भगवान् आ जाते हैं, और भगवान्‌को आना ही पड़ता है, पर जहाँ भगवान् जायँ, वहाँ उनका नाम आ जाय‒यह कोई नियम नहीं है । नामके बिना भगवान्‌को जान नहीं सकते । इसलिये नाम आँख मीचकर लेते जाओ । वहाँ रघुनाथजी महाराज आ जायेंगे । प्रेमसे पुकारकी जाय तो भगवान् उसके आचरणोंकी ओर देखते ही नहीं और बिना बुलाये ही आ जाते हैं ।
  
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे