।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७१, गुरुवार

सफला एकादशी-व्रत (सबका)
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                 

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

सुतीक्ष्ण मुनिको भगवान् स्वयं जाकर जगाते हैं । नामके प्रेमीके पीछे रघुनाथजी महाराज चलते हैं । अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूययेत्यङ्‌घ्रिरेणुभिः’ जिनके हृदयमें भोगोंकी, पदार्थोंकी लौकिक कोई भी इच्छा नहीं, मेरी मुक्ति हो जाय, मैं बंधनसे छूट जाऊँ, ऐसी भी मनमें इच्छा नहीं रहे‒ऐसे निष्किञ्चन भक्त भगवान्‌के भजनमें रात-दिन लगे रहते हैं । उनके पीछे-पीछे भगवान् घूमते हैं‒भगवान् कहते हैं, उनके पीछे-पीछे मैं डोलता हूँ, जिससे मैं पवित्र हो जाऊँ । भगवान् भी अपवित्र होते हैं क्या ? पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां च मङ्गलम्’‒भगवान् पवित्रोंके पवित्र हैं । वे भी नामसे पवित्र हो जायँ । नामसे दुनिया पवित्र होती है । करोड़ों ब्रह्माण्ड भगवान्‌के एक-एक रोममें रहते हैं, जहाँ भगवान्‌के भक्तकी चरणरज पड़ जाय तो ब्रह्माण्ड पवित्र हो जाय । जो कोई पवित्र होता है, उसके रूपमें भगवान् ही पवित्र होते हैं ।

वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥
                                                                     (गीता ७ । १९)

भगवान्‌में और भगवान्‌के प्यारे भक्तमें भेद नहीं होता । वे प्रभुके हो गये, इसलिये भक्त प्रभुमय हो जाते हैं ।

                             यः  सेवते  मामगुणं   गुणात्परं
                                 हृदा कदा वा यदि वा गुणात्मकम् ।
                             सोऽहं स्वपादाञ्चितरेणुभिः स्पृशन्
                                 पुनाति  लोकत्रितयं  यथा  रविः ॥
                                                          (अध्यात्म, उत्तरकाण्ड ५ । ६१)


अध्यात्म-रामायणके उत्तरकाण्डमें पाँचवाँ सर्ग है, जिसमें रामगीता आती है । रामजीने लक्ष्मणजीको वहाँ उपदेश दिया है । वहाँ वे कहते हैं‒शुद्ध सच्चिदानन्द निर्गुण परमात्माका कोई ध्यान करे चाहे सगुणका, वह मेरा ही स्वरूप है । वह जहाँ जाता है, वहाँ उसके चरणोंके स्पर्शकी रजसे त्रिलोकी पवित्र हो जाती है । जहाँ वह जाता है, वहाँ प्रकाश कर देता है । जैसे, सूर्यभगवान् जिस देशमें जाते हैं, वहाँ प्रकाश कर देते हैं । वे प्रकाश करते हैं बाहरका, जब कि संत-महात्मा उनके हृदयमें प्रकाश कर देते हैं; क्योंकि संत-महात्माओंके हृदयमें ठाकुरजी विराजमान रहते हैं, और जो हरदम भगवान्‌का ही भजन, ध्यान, चिन्तन करते रहते हैं, वे वन्दनीय होते हैं । उनके यही व्यापार है, यही काम-धन्धा है और न कोई उनके काम है, न धन्धा है, न देना है, न लेना है । रात-दिन भगवान्‌में मस्त रहते हैं । ऐसे वे प्रभुके प्यारे भक्त होते हैं, जो दूसरोंको भी पवित्र कर देते हैं । 
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे