।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७१, शनिवार
वसन्तपंचमी
समयका मूल्य और सदुपयोग


             
       
श्रीपरमात्माकी इस विचित्र सृष्टिमें मनुष्य-शरीर एक अमूल्य एवं विलक्षण वस्तु है । यह उन्नति करनेका एक सर्वोत्तम साधन है । इसको प्राप्त करके सर्वोत्तम सिद्धिके लिये सदा सतत चेष्टा करनी चाहिये । इसके लिये सर्वप्रथम आवश्यकता है‒ध्येयके निश्चय करनेकी । जबतक मनुष्य जीवनका कोई ध्येय‒उद्देश्य ही नहीं बनाता, तबतक वह वास्तवमें मनुष्य कहलाने योग्य ही नहीं; क्योंकि उद्देश्यविहीन जीवन पशु-जीवनसे भी निकृष्ट है किंतु जैसे मनुष्य-शरीर सर्वोत्तम है, वैसे इसका उद्देश्य भी सर्वोत्तम ही होना चाहिये । सर्वोत्तम वस्तु है, परमात्मा । इसलिये मानव-जीवनका सर्वोत्तम ध्येय है‒परमात्माकी प्राप्ति, जिसके लिये भगवान् श्रीकृष्णने कहा है‒

यं लब्ध्वा चापरं लाभ मन्यते नाधिकं ततः ।

इस परमात्माकी प्राप्तिके लिये सबसे पहला और प्रधान साधन है‒‘जीवनके समयका सदुपयोग ।’ समय बहुत ही अमूल्य वस्तु है । जगत्‌के लोगोंने पैसोंको तो बड़ी वस्तु समझा है, किन्तु समयको बहुत ही कम मनुष्योंने मूल्य दिया है; पर वस्तुतः विचार करनेपर यह स्पष्ट हो जाता है कि समय बहुत ही मूल्यवान् वस्तु है । विचार कीजिये‒अपना समय देकर हम पैसे प्राप्त कर सकते हैं, पर पैसे देकर समय नहीं खरीद सकते । अन्तकालमें जब आयु शेष हो जाती है, तब लाखों रुपये देनेपर भी एक घंटे समयकी कौन कहे एक मिनट भी नहीं मिल सकता । समयसे विद्या प्राप्त की जा सकती है, पर विद्यासे समय नहीं मिलता । समय पाकर एक मनुष्यसे कई मनुष्य बन जाते हैं, अर्थात् बहुत बड़ा परिवार बढ़ सकता है; पर समस्त परिवार मिलकर भी मनुष्यकी आयु नहीं बढ़ा सकता । समय खर्च करनेसे संसारमें बड़ी भारी प्रसिद्धि हो जाती है, पर उस प्रसिद्धिसे जीवन नहीं बढ़ सकता । समय लगाकर हम जमीन-जायदाद, हाथी-घोड़े धन-मकान आदि अनेक चल-अचल सामग्री एकत्र कर सकते हैं, पर उन सम्पूर्ण सामग्रियोंसे भी आयु-वृद्धि नहीं हो सकती । यहाँ एक बात और ध्यान देनेकी है कि रुपये, विद्या, परिवार, प्रसिद्धि, अनेक सामग्री आदिके रहते हुए भी जीवनका समय न रहनेसे मनुष्य मर जाता है, किंतु उम्र रहनेपर तो सर्वस्व नष्ट हो जानेपर भी मनुष्य जीवित रह सकता है । इसलिये जीवनके आधारभूत इस समयको बड़ी ही सावधानीके साथ सदुपयोगमें लाना चाहिये, नहीं तो यह बात-ही-बातमें बीत जायगा, क्योंकि यह तो प्रतिक्षण बड़ी तेजीके साथ नष्ट हुआ जा रहा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे




[*] आश्रयअवलम्बनअधीनताप्रपत्ति और सहारा‒ये सभी शब्द शरणागति’ के पर्याय हैंपरन्तु इनमें थोड़ा भेद हैजैसे‒पृथ्वीके आधारके बिना हम रह नहीं सकतेऐसे ही भगवान्‌के आधारके बिना हम रह न सकें‒यह भगवान्‌का आश्रय’ है । हाथकी हड्डी टूट जाय तो डाक्टरलोग उसपर पट्टी बाँधकर उसको गलेके सहारे लटका देते हैंऐसे ही भगवान्‌का सहारा लेने (पकड़ने) का नाम अवलम्बन’ है । भगवान्‌को मालिक मानकर उनका दास बन जाना अधीनता’ है । भगवान्‌के चरणोंमें गिर जाना प्रपत्ति’ है । जलमें डूबते हुएको किसी वृक्षशिला आदिका आधार मिल जायऐसे ही संसार-समुद्रमें डूबनेके भयसे भगवान्‌का आधार लेना सहारा’ है ।