।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७१, सोमवार
गणतन्त्रदिवस, रथसप्तमी, अचलासप्तमी
समयका मूल्य और सदुपयोग


      
(गत ब्लॉगसे आगेका)

अब हमें सोचना चाहिये कि अलौकिक पूंजीकी खर्च करके तो अलौकिक लाभ ही प्राप्त करनेयोग्य है । साधारणतया आहार, विहार और जीविकाके कार्यसे हम लौकिक लाभ ही उठाते हैं तथा शयनमें तो श्रम दूर करनेके सिवा कोई विशेष लाभकी बात दीखती ही नहीं, परंतु ये ही सब कर्म यदि निष्कामभावसे किये जायँ तो सर्वोत्तम अलौकिक लाभ प्रदान कर सकते हैं ।

यहाँ एक बात और समझनेकी है कि यदि साधन भी सकाम-भावसे किया जाता है तो वह समय भी लौकिक लाभ ही देनेवाला होता है और निष्कामभावसे करनेपर वही साधन अलौकिक लाभ देनेवाला हो जाता है । अतः हमें सभी काम निष्कामभावसे ही करने चाहिये ।

अभिप्राय यह कि हमें अवबोध‒मोहनिद्रासे जगकर परमात्माकी ओर ही अपनी सब क्रियाओंका लक्ष्य बना लेना चाहिये । इससे हमको जो अबतक केवल सांसारिक‒लौकिक लाभ ही हो रहा था, उसकी जगह अलौकिक लाभ होने लगेगा और इस प्रकार हम लौकिक पूँजीको भी अलौकिक पूँजी बना सकेंगे ।

यह बात तो ऊपर कही जा चुकी है कि आहार-विहार और शयन‒ये दोनों खर्चके काम हैं, इनमें भी आहार-विहारमें तो द्रव्यका खर्च है और शयनमें जीवनका । इसी प्रकार जीविका और अवबोध‒ये दोनों उपार्जनके काम हैं, इनमें आजीविकामें द्रव्यका उपार्जन होता है और अवबोधमें नित्य-जीवन (मोक्ष) का उपार्जन । अतः मनुष्यको चाहिये कि नित्य-जीवनके उपार्जनका समय, जो कि अलौकिक है, द्रव्योपार्जनके साधन‒आजीविकाके कार्यमें न लगाये, प्रत्युत उसमें भी निष्कामभाव और भगवत्स्मृतिको सम्मिलित करके उसे नित्य-जीवनके उपार्जनका साधन बना ले । शयनमें जीवनका खर्च और अवबोधमें नित्य-जीवनका उपार्जन होता है । इसलिये जितना सम्भव हो, द्रव्यके खर्चके कारणभूत आहार-विहारमेसे और जीवनके खर्चके कारणभूत शयनमेंसे समय निकालकर निष्कामभावपूर्वक द्रव्योपार्जनमें तथा नित्य-जीवन‒अवबोध (साधन करने) में समय लगाये ।


भाव यह है कि शौच-स्नान आदिमें यदि पाँच घंटेसे ही काम चल जाय तो सात घंटे निष्कामभावपूर्वक द्रव्योपार्जनादि कर्मोंमें लगावे और यदि शौच-स्नानादिमें चार घंटेसे ही काम चल जाय तो आठ घंटे निष्कामभावसे द्रव्योपार्जनमें लगावे । इसी तरह सोनेमें यदि पाँच घंटेसे ही काम चल जाय तो सात घंटे भजन-ध्यान, जप, स्वाध्याय-सत्संग, पूजा-पाठ आदि पारमार्थिक साधनमें लगाने चाहिये और यदि शयनमें चार घंटेसे ही काम निकल जाय तो आठ घंटे भजन-ध्यानादिमें अवश्य लगाने चाहिये । तात्पर्य यह कि आय अधिक और व्यय कम होना चाहिये । अर्थात् हो सके, जितना समय निद्रासे निकालकर तो लगाया जाय भजनमें और खान-पानादिसे समय निकालकर लगाया जाय निष्कामभावपूर्वक आवश्यक काम-काजमें । 

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे