।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
होली (वसन्तोत्सव) 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

विश्वामित्र ऋषिका यज्ञ पूरा करके रामजी जनकपुरी पहुँचे । राजा जनकके बड़ी आफत थी । हमारी कन्याका लगन हो जाय, यह बड़ी चिन्ता थी । पुत्रीके विवाहकी चिन्ता माता-पिताके रहती ही है । महाराज जनकने धनुष-यज्ञ रचा । इस धनुषको जो तोड़ देगा, उसके साथ अपनी बेटीको व्याह दूँगा‒ऐसी प्रतिज्ञा की । बड़े-बड़े बलवान् राजा लोग आये । रावण, बाणासुर आदि रात्रिमें आकर धनुषको उठानेका उद्योग करके हार चुके थे, इसलिये राजाओंके सामने उसको छूनेकी उनकी हिम्मत ही नहीं पड़ी । ‘यों ही क्यों अपनी बेइज्जती कराओ मुफ्तमें, यह टूटनेवाला तो है नहीं ।’ सबका घमण्ड दूर हो गया । महाराज जनकके बड़ी चिन्ता हो गयी । वे कहते हैं कि यदि प्रण छोड़ देता हूँ तो बड़ा दोष लगता है । प्रतिज्ञा भंग करना बड़ा पाप है; और यदि प्रण नहीं छोड़ता हूँ तो कन्या कुँआरी रह जाती है । अब क्या करूँ ? ऐसी आफत जनकजीके आ गयी । रामजीने कृपा की । शंकरजीके धनुषको तोड़ दिया । भगवान् रामने जाकर शंकरके चापको तोड़ा, पर नाम महाराजको कहीं जाना नहीं पड़ता, इनका प्रताप ही ऐसा है कि वह संसारके जन्म-मरणके भयको सर्वथा मिटा देता है । यहाँ रामजीने एक शंकरके चापको तोड़ा, पर नाम महाराजका प्रताप ही हजारों, लाखों, करोड़ों मनुष्योंके भव-बन्धनको तोड़ देता है । नाम महाराजके प्रभावसे मनुष्य संसार-बन्धनसे मुक्त हो जाते हैं ।

यस्य स्मरणमात्रेण  जन्मसंसारबन्धनात् ।
विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे ॥
                                             (विष्णुसहस्रनाम)

दंडक  बनु   प्रभु   कीन्ह  सुहावन ।
जन मन अमित नाम किए पावन ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ७)

विवाह कराकर रामजी अयोध्या वापस आ गये । फिर उनको वनवास हुआ । रामजीके लिये कहा गया‒‘दंडक  बनु   प्रभु   कीन्ह  सुहावन’ दण्डकवनको शाप था । इस कारण बालू बरस गयी थी और जंगल सब सूख गया था । ऐसा सूखा जंगल था, वह दण्डकवन ! भगवान् रामजीके पधारनेसे वह हरा-भरा हो गया, सुहावना हो गया । सब-का-सब जंगल बड़ा सुन्दर हो गया । रामजीने एक जंगलको हरा-भरा कर दिया, पवित्र कर दिया; परंतु जन मन अमित नाम किए पावन’ भगवन्नामने अपने अनगिनत जनोंके मनकों पवित्र कर दिया । मनरूपी जंगल कितने सूखे पड़े हुए थे जिनकी गिनती नहीं, इतने अमित मन पावन किये ! ऐसे रामजीकी अपेक्षा नामजी कितने बड़े हुए !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे