।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७२, सोमवार
भगवान्विष्णु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

वे परब्रह्म परमात्मा ही सगुणरूपमें महाविष्णुनामसे कहे जाते हैं । अनन्त ब्रह्माण्डोंकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करनेवाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनन्त हैं, पर महाविष्णु एक ही है । उस महाविष्णुसे ही अलग-अलग ब्रह्माण्डोंके अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रकट होते हैं

संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना ।
उपजहिं जासु अंस तें नाना ॥
                             (मानस १ । १४४ । ३)

ब्रह्मवैवर्तपुराणमें उस परब्रह्म परमात्माको ही द्विभुज कृष्ण और चतुर्भुज विष्णुरूपसे बताया गया है

त्वमेव   भगवानाद्यो    निर्गुणः   प्रकृतेः   परः ।
अर्द्धाङ्गो द्विभुजः कृष्णोऽप्यर्द्धाङ्गेन चतुर्भुजः ॥
                                                (प्रकृति १२ । १५)

आप सबके आदि, निर्गुण और प्रकृतिसे अतीत भगवान्‌ ही अपने आधे अंगसे द्विभुज कृष्ण और आधे अंगसे चतुर्भुज विष्णुके रूपमें प्रकट हुए हैं ।’

द्विभुजो राधिकाकान्तो लक्ष्मीकान्तश्चतुर्भुजः ।
गोलोके  द्विभुजस्तस्थौ   गोपैर्गोपीभिरावृतः ॥
चतुर्भुजश्च   वैकुण्ठं    प्रययौ  पद्मया     सह ।
सर्वांशेन  समौ  तौ  द्वौ  कृष्णनारायणौ परौ ॥
                                         (प्रकृति ३५ । १४-१५)

द्विभुज कृष्ण राधिकापति हैं और चतुर्भुज विष्णु लक्ष्मीपति हैं । कृष्ण गोप-गोपियोंसे आवृत होकर गोलोकमें और विष्णु वैकुण्ठमें स्थित हैं । वे कृष्ण और विष्णुदोनों सब प्रकारसे समान ही हैं ।

जब भगवान्के अत्युग्र विराट्रूप (सहस्रभुजरूप) को देखकर अर्जुन भयभीत हो गये, तब उनको आश्वासन देनेके लिये भगवान् पहले चतुर्भुजरूपसे और फिर द्विभुजरूपसे अर्जुनके सामने प्रकट हुए

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा  
स्वकं  रूपं दर्शयामास भूयः ।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥
                                                   (गीता ११ । ५०)

‘वासुदेव भगवान्ने अर्जुनसे ऐसा कहकर फिर उसी प्रकारसे अपना देवरूप (चतुर्भुजरूप) दिखाया और महात्मा श्रीकृष्णने पुनः सौम्यरूप (द्विभुजरूप) होकर भयभीत अर्जुनको आश्वासन दिया[*]

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे


[*] द्विभुज होनेके कारण सौम्यरूपको मनुष्यरूप भी कहा गया हैदृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन (गीता ११ । ५१)